
श्री राजनाथ सिंह का जन्म 10 जुलाई, 1951 को ग्राम बभौरा, तहसील चकिया, जिला वाराणसी (अब जिला चन्दौली) उत्तर प्रदेश में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री रामबदन सिंह और माता का नाम श्रीमती गुजराती देवी हैं।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की और उसके बाद, उन्होंने एम.ए. (भौतिकी) परीक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश से उत्तीर्ण की। उन्होंने के.बी. पोस्ट- ग्रेजुएट कॉलेज, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में भौतिकी के प्रवक्ता (लेक्चरर) पद पर कार्य किया।
वे एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे और अपने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। वे 1972 में मिर्जापुर शहर के संघकार्यवाह (महासचिव) बन गए। वे वर्ष 1969 से 1971 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् गोरखपुर संभाग के संगठन सचिव भी रहे।
उन्होंने सन् 1974 में राजनीति में प्रवेश किया और शीघ्र ही भारतीय जनसंघ, मिर्जापुर के सचिव बन गए। सन् 1975 में वे जनसंघ के जिलाध्यक्ष तथा जे.पी. आन्दोलन के जिला समन्वयक बने।
उन्हें आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इस 18 महीने की अवधि के दौरान उनकी माताजी का देहान्त हो गया लेकिन उन्होंने अपनी माताजी की अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए पैरोल पर जाने से इन्कार कर दिया।
वे सन् 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायक (एम.एल.ए.) के रूप में निर्वाचित हुए।
वे सन् 1983 में उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी के राज्य सचिव बने और 1984 में वे भारतीय जनता पार्टी के युवा प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष बने। वे सन् 1986 में भाजपा युवा मोर्चे के राष्ट्रीय महासचिव और बाद में 1988 में भाजपा युवा मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
वे सन् 1988 में उत्तर प्रदेश में एम.एल.सी. चुने गए और 1991 में शिक्षा मंत्री बने। उत्तर प्रदेश में शिक्षा मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने नकल विरोधी अधिनियम बनाकर तथा शिक्षा पाठयक्रम में वैदिक गणित को शामिल करके और इतिहास की पाठय-पुस्तकों के विभिन्न भागों में सुधार करके कुछ ऐतिहासिक कार्य किए।
वे 1994 में राज्यसभा के सदस्य बने और राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी के मुख्य सचेतक भी बनाए गए।
वे 25 मार्च 1997 को उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बने। इस अवधि के दौरान संगठन का विस्तार करने और उसे मजबूत बनाने के अलावा, उन्होंने राजनीतिक संकट के दौरान भाजपा शासित सरकार को दो बार बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वे 22 नवम्बर, 1999 को केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री बने। इस अवधि के दौरान उन्हें श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी परियोजना-राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम को शुरू करने का मौका मिला।
वे 28 अक्तूबर, 2000 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और बाराबंकी में हैदरगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से दो बार विधायक चुने गए। वे वर्ष 2002 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बने।
वे 24 मई, 2003 को केन्द्रीय कृषि मंत्री बने और बाद में खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बने। इस अवधि के दौरान 'किसान कॉल सेन्टर' और 'कृषि आय बीमा योजना' जैसी कुछ युगान्तरकारी परियोजनाएं शुरू की।
वे जुलाई, 2004 में फिर से भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किए गए।
उन्होंने महासचिव के रूप में छत्तीसगढ़ और झारखंड, दो राज्यों का प्रभार संभाला तथा अपनी अनुकरणीय संगठनात्मक योग्यता से दोनों राज्यों में भाजपा की विजय सुनिश्चित की।
वे 31 दिसम्बर, 2005 को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। भाजपा अध्यक्ष के रूप में उन्होंने पूरे देश का दौरा किया। उन्होंने भारत सुरक्षा यात्रा भी प्रारंभ की जिसमें उन्होंने आंतरिक सुरक्षा के लिए बढ़ती हुई आतंकवादी गतिविधियों और खतरों के मुद्दे को उठाते हुए कई राज्यों का दौरा किया। उन्होंने आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों, किसानों की शिकायतों और यू.पी.ए. सरकार द्वारा व्यवहार में लाए गए द्वेषपूर्ण अल्पसंख्यकवाद जैसे मुद्दों पर जनमत बनाने पर बल दिया।
जब वे भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे उन्होंने बेरोजगारी-इसके कारणों और उपायों पर एक पुस्तक भी लिखी है।
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