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बुधवार, 3 मार्च 2010

वे नौ महीने: क्या करें,

ईश्वर हर जगह नहीं
हो सकता , इसलिए उसने मां बनाई ... यह कहावत जितनी सच है , उतना ही बड़ा सच यह भी है कि किसी महिला को मां के दर्जे तक पहुंचाने वाले नौ महीने बेशकीमती होते हैं। इन नौ महीनों में वह क्या सोचती है , क्या खाती है , क्या करती है , क्या पढ़ती है , ये तमाम चीजें मिलकर आनेवाले बच्चे की सेहत और पर्सनैलिटी तय करती हैं। इन नौ महीनों को अच्छी तरह प्लान करके कैसे मां एक सेहतमंद जिंदगी को जीवन दे सकती है , एक्सपर्ट्स से बात करके बता रही हैं प्रियंका सिंह : मां बनने की सही उम्र मां बनने के लिए 20-30 साल की उम्र सबसे सही होती है , लेकिन आजकल बड़ी संख्या में महिलाएं करियर की वजह से 32-33 साल की उम्र में मां बनना पसंद कर रही हैं। उन्हें अपना ज्यादा ध्यान रखना चाहिए। शुरू से ही किसी अच्छी गाइनिकॉलजिस्ट की देखरेख में रहें। 35 साल के बाद बच्चा प्लान करने से मां और बच्चा , दोनों को दिक्कतें आ सकती हैं। उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं में मेडिकल प्रॉब्लम जैसे कि हाइपरटेंशन , ब्लडप्रेशर , डायबीटीज आदि की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में गर्भधारण करने में परेशानी आने के अलावा बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। बच्चे में डाउंस सिंड्रोम ( मंगोल बेबी ) हो सकता है , यानी बच्चे का मानसिक विकास गड़बड़ाने का खतरा होता है। डिलिवरी के वक्त भी मुश्किल हो सकती है। पहले से रहें तैयार अगर आप बच्चा प्लान कर रही हैं तो कम - से - कम तीन - चार महीने पहले से शारीरिक और मानसिक तौर पर खुद को तैयार करना शुरू कर दें। उसी के मुताबिक खानपान का ध्यान रखें , भरपूर नींद लें और स्ट्रेस लेवल कम रखें। कोशिश करें कि सामान्य से वजन न बहुत ज्यादा हो , न बहुत कम। प्राणायाम और योगासन करें। इससे तन और मन , दोनों शांत रहेंगे और गर्भधारण में आसानी होगी। प्री - कंसेप्शनल काउंसलिंग : गर्भधारण करने से पहले काउंसलिंग ( प्री - कंसेप्शनल काउंसलिंग ) कराना अच्छा रहता है। इसके लिए पति - पत्नी दोनों को डॉक्टर के पास जाना चाहिए। काउंसलिंग के अलावा डॉक्टर पति - पत्नी के कुछ टेस्ट भी करवाते हैं , जैसे कि ब्लड टेस्ट , शुगर टेस्ट , हीमोग्लोबिन टेस्ट आदि। अगर माता - पिता को कोई बीमारी है तो इन टेस्ट में उसकी जानकारी मिल जाती है। मसलन , अगर पति आरएच (Rh+) पॉजिटिव और पत्नी आरएच नेगेटिव (Rh-) हो और दूसरा बच्चा प्लान कर रहे हों ( पहले बच्चे को कोई दिक्कत नहीं होगी ) तो बच्चे को एनीमिया , पीलिया या हाइड्रॉप्स फिटालिस ( बच्चे का शरीर सूजा और पानी भरा ) हो सकता है। पहले से जानकारी मिलने पर इंजेक्शन लगाकर बच्चे को बीमारी से बचाया जा सकता है। पहले बच्चे को इस तरह की बीमारी अनीमिया , हाइपोथायरॉडिज्म , कैलशियम की कमी जैसी समस्याओं के अलावा फैमिली में किसी बीमारी की हिस्ट्री रही है तो पहले से जानकारी मिलने पर इलाज आसान होता है। थैलसीमिया से पीड़ित होने पर अबॉर्शन कराना ही बेहतर रहता है। अगर बच्चे के लिए पहले से तैयार हैं तो उसके अचानक आ जाने का तनाव भी नहीं होगा।

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