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गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

तीन तलाक अवैध

महिलाएंImage copyrightAP
तीन तलाक के मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यह मुस्लिम महिलाओं के ख़िलाफ़ क्रूरता है और इससे महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है.
इस मामले में दो अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस सुनीत कुमार ने कहा कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है. हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि पवित्र क़ुरान में भी तीन तलाक़ को अच्छा नहीं माना गया है.
पिछले दिनों इस मुद्दे पर जब युनिफ़ॉर्म सिविल कोड पर बहस गरम हुई थी तो इसे लेकर मुस्लिम समाज के एक वर्ग ने तीन तलाक में किसी तरह के बदलाव का जमकर विरोध किया था.
मुस्लिम समाज के उलेमा का कहना है कि तीन तलाक़ उनकी शरीयत का हिस्सा है और इसमें बदलाव का हक़ किसी को नहीं है.
तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी कुछ मामले चल रहे हैं. दूसरी तरफ विधि आयोग ने भी जिन 11 सवालों पर आम लोगों की राय मांगी है .

बुधवार, 7 दिसंबर 2016

नोटबंदी ने संकट पैदा किया

  • 8 दिसंबर 2016
नोटबंदी में देश क़तारबंद है. आज एक महीना हो गया. बैंकों और एटीएम के सामने क़तारें बदस्तूर हैं. जहाँ लाइन न दिखे, समझ लीजिए कि वहाँ नक़दी नहीं है!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बस पचास दिन की तकलीफ़ है. तीस दिन तो निकल गए. बीस दिन बाद क्या हालात पहले की तरह सामान्य हो जायेंगे? क्या लाइनें ख़त्म हो जाएंगी?
और क्या 30 दिसंबर के बाद जवाब मिल जाएगा कि नोटबंदी से क्या हासिल हुआ? नहीं, ऐसा नहीं होगा. अब तो सरकार ही संकेत दे चुकी है कि एक-दो तिमाही या उससे भी आगे तक कुछ परेशानी बनी रह सकती है. उसके बाद ही हमें पता चल पाएगा कि नोटबंदी से फ़ायदा हुआ या नुक़सान? और हुआ तो कितना?

वैसे तो कहा जा रहा है कि इसका फ़ायदा लंबे समय बाद दिखेगा. कितने लंबे समय बाद? और क्या फ़ायदा दिखेगा? तरह-तरह के क़यास हैं. सच यह है कि अभी किसी को कुछ नहीं मालूम.
नोटबंदी क्यों हुई थी? प्रधानमंत्री के आठ नवम्बर के भाषण को याद कीजिए. उन्होंने चार बातें कहीं थीं- इससे भ्रष्टाचार मिटेगा, काला धन ख़त्म होगा, फ़र्ज़ी करेंसी ख़त्म होगी और चरमपंथ को मदद बंद हो जाएगी. और यह कहा था कि करेंसी में बड़े मूल्य के नोटों का हिस्सा अब एक सीमा के भीतर रहे, रिज़र्व बैंक यह देखेगा.
बड़े नोटों को क्यों एक सीमा के भीतर रखे जाने की बात कही गई? प्रधानमंत्री का कहना था कि 'कैश के अत्यधिक सर्कुलेशन का सीधा संबंध भ्रष्टाचार से है' और ऐसे भ्रष्टाचार से कमाई गई नक़दी से महंगाई बढ़ती है, मकान, ज़मीन, उच्च शिक्षा की क़ीमतों में कृत्रिम बढ़ोत्तरी होती है.
यानी नोटबंदी के पीछे की सोच यह थी. सवाल यही है कि यह हाइपोथीसिस सही है या ग़लत? अगर सही है तो नोटबंदी का फ़ैसला सही है, अगर हाइपोथीसिस ग़लत है, तो नोटबंदी का फ़ैसला ग़लत 
एक महीने बाद कुछ बातें अब साफ़ हो चुकी हैं. एक, जैसा शुरू में सोचा गया था कि क़रीब ढाई-तीन लाख करोड़ रुपये की 'काली नक़दी' बैंकों में नहीं लौटेगी, वह ग़लत था.
कब तक शुरू होंगे भारत के सारे एटीएम?
अब ख़ुद सरकार का अनुमान है कि क़रीब-क़रीब सारी रद्द की गई करेंसी बैंकों में वापस जमा हो जाएगी. दो, विकास दर पर इसका विपरीत असर पड़ेगा, यह कोई विपक्षी तुक्का नहीं है. रिज़र्व बैंक ने मान लिया है कि विकास दर 7.6% है
तीसरी बात यह कि एटीएम और बैंकों से पैसा पाने की लाइनें शायद अभी कुछ ज़्यादा दिनों तक देखने को मिलें. कितने दिन, कह नहीं सकते. क्योंकि एक तो नयी करेंसी छपने में जो समय लगना है, वह तो लगेगा ही, लेकिन सरकार की हाइपोथीसिस है कि ज़्यादा करेंसी से भ्रष्टाचार और महँगाई बढ़ती है, इसलिए वह 'लेस-कैश' इकॉनॉमी की तरफ़ बढ़ना चाहती है, यानी बाज़ार में नक़दी जानबूझकर कम ही डाली जायेगी.
जितनी पुरानी करेंसी थी, उतनी तो नयी करेंसी नहीं ही आयेगी, ताकि लोग डिजिटल लेनदेन के लिए मजबूर हों.
इसमें कोई शक़ नहीं कि लोग मजबूर तो हुए हैं. हम भी अख़बारों में तस्वीर देख रहे हैं कि किसी सब्ज़ीवाले ने या मछली बेचनेवाली ने पेटीएम से लेनदेन शुरू कर दिया है. तो डिजिटल लेनदेन बेशक बढ़ा है.
लेकिन इस सच का एक दूसरा पहलू भी है. वह चौंकानेवाला है.
आठ नवंबर के बाद से डेबिट-क्रेडिट कार्ड से होनेवाले लेनदेन की संख्या बढ़ कर दोगुनी हो गई, लेकिन प्रति डेबिट कार्ड ख़र्च का औसत 27 सौ रुपये से घट कर दो हज़ार रुपये ही रह गया. क्रेडिट कार्ड के मामले में यह गिरावट 25-30% तक है. क्यों? इसलिए कि लोग आटा-दाल-दवा जैसे ज़रूरी ख़र्चों के लिए कार्ड इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन शौक़िया ख़र्चे फ़िलहाल रोक रहे हैं.
यह समझने की बात है. जो करेंसी निकाल रहा है, वह ख़र्च नहीं कर रहा है, इस डर से कि लाइन में लगना पड़ेगा. तो यह ख़र्च न करना कहीं उसके मन में गहरे तक बैठ गया है. इसलिए वह कार्ड से भी 'ग़ैर-ज़रूरी' ख़र्च नहीं कर रहा है. इसीलिए 'डिजिटल इकॉनॉमी' की रीढ़ कहे जानेवाले मोबाइल फ़ोन तक की ख़रीद में इस महीने भारी गिरावट देखी गई है!
यह 'कम ख़र्ची' का सिन्ड्रोम कितने दिन रहेगा, कह नहीं सकते. उधर भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है, जो नक़दी पर ही चलता है.
इसमें करोड़ों मज़दूर हैं, रेहड़ी-पटरीवाले, छोटे दुकानदार और कारख़ानेदार, किसान और छोटी-मोटी सेवाएँ देनेवाले तमाम लोग हैं.
उनकी कमाई पर असर अब साफ़-साफ़ दिख रहा है. अब उनको बैंकिंग से जोड़ने की बात हो रही है. लेकिन वह इतना आसान है क्या?
विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार भारत में 43% खाते 'डारमेंट' हैं यानी इस्तेमाल में नहीं हैं. तो इतने सारे लोगों को बैंकिंग से जोड़ना, उन्हें बैंकिंग लेनदेन और डिजिटल इकॉनॉमी का अभ्यस्त बनाना एक बड़ा लंबा काम है, जिसमें बड़ा समय लगेगा.
तो लोग जब तक सामान्य तौर पर ख़र्च करना नहीं शुरू करेंगे, असंगठित क्षेत्र में जब तक कामकाज पटरी पर नहीं लौटेगा, तब तक अर्थव्यवस्था पर दबाव बना रहेगा. यह कितने दिन रहेगा, अभी कोई नहीं कह सकता.
अब काले धन की निकासी की बात. पहली बात तो नोटबंदी से काला धन ख़त्म होगा, यह एक भ्रामक जुमला है.
काला धन नहीं, सिर्फ़ काली नक़दी ख़त्म हो सकती है. काले धन का तो चुटकी भर हिस्सा ही नोटों में रहता है. बाक़ी सारा काला धन तो ज़मीन-जायदाद, सोने-चाँदी, हीरे-मोती और न जाने किस-किस रूप में रहता है.
अब तो सारी पुरानी नक़दी बैंकों में लौटने का अनुमान है. यानी सारी काली नक़दी बैंक में वापस पहुँचेगी. तो सरकार काला धन कैसे पकड़ेगी? इतनी बड़ी क़वायद के बाद उसे कुछ काला धन तो पकड़ना ही है, वरना बड़ी भद पिटेगी.
इसलिए इनकम टैक्स विभाग ने एक बड़ा डेटा एनालिटिक्स साफ़्टवेयर तैयार किया है, जो बैंकों में जमा की गयी हर संदिग्ध रक़म को पकड़ेगा, फिर लोगों को नोटिस भेजे जाएंगे, फिर पेशी और आप जानते हैं कि उसके बाद क्या होता है.
नोटबंदी के बाद काले को सफ़ेद करने के लिए कैसा भ्रष्ट जुगाड़ तंत्र तैयार हुआ, कैसे कुछ बैंकों में कुछ 'ख़ास' लोगों को नोट बदले गए, कैसे कुछ लोगों तक लाखों-करोड़ों के दो हज़ार के नए नोट पहुँच गए. यह सब हमारे सामने है. यानी नोटबंदी ने एक नए भ्रष्टाचार को जन्म दिया और नए नोटों का काला धन रातोंरात पैदा कर दिया. तो इससे भ्रष्टाचार और काला धन कैसे रुकेगा?
दूसरे यह भी चीज़ों का अति सरलीकरण है कि 'कैशलेस लेनदेन' के बाद न टैक्स चोरी हो सकती है, न घूसख़ोरी. स्वीडन में तो सिर्फ़ दो प्रतिशत ही नक़द लेनदेन होता है. लेकिन टैक्स चोरों को पकड़ने के लिए वहाँ भी सरकार जूझती ही रहती है. इसी तरह से भ्रष्टाचार की बात. बड़ी-बड़ी घूस तो आजकल कंपनियाँ बना कर ही ली जा रही है, बाक़ायदा चेक से.
एक महीने बाद लगता है कि यात्रा अभी लंबी है और मुश्किल भी. उधर, प्रधानमंत्री ने मुरादाबाद में 'फ़क़ीर' वाली बात क्यों बोली? उसके पहले तो उन्होंने दावा किया था कि जनता उनके इस क़दम के भारी समर्थन में है. फिर वह डोरा-डंडा छोड़ कर चले जाने की बात से किस तक पहुँचाना चाहते थे?
मोदी जी क्यों दुःखी हैं? आलोचनाओं से? उसकी उन्होंने कब परवाह की है. क्या उन्हें शंका है कि उनका जुआ कहीं उलटा न पड़ जाये? वह तो भविष्य के गर्भ में हैं. फिर क्या वह विपक्ष के हमले से दुःखी हैं? हाँ, संघ से जुड़े कई पत्रकार नोटबंदी के ख़िलाफ़ ख़ूब लिख रहे हैं. 

सोमवार, 5 दिसंबर 2016

जय ललिता: जिन्दगी में हमेशा जितना सीखा

जय ललिता जयरामजी दक्षिण का एक राजनैतिक सूरज



आज जिन्दगी और मौत के बीच उलझा हुआ खेल खेलती जय् ललिता अपने समर्थको के लिए अम्मा हैं ।

जयललिता जयराम जी का जन्म  24 फरवरी 1948मैसूर में हुआ । ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद जय ललिता ने बहुत कम आयु में फिल्मो मेवं अभिनय किया ।वर्तमान में वो ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) की महासचिव तथा तमिलनाडु राज्य की ब्राह्मण महिला मुख्यमंत्री हैं। वे उन कुछ ख़ास भूतपूर्व प्रतिष्ठित सुपरस्टार्स में से हैं जिन्होंने न सिर्फ सिनेमा के क्षेत्र में प्रतिष्ठा अर्जित किया बल्कि तमिलनाडु की राजनीति में भी महत्वपूर्ण रहे हैं। राजनीति में प्रवेश से पहले वे एक लोकप्रिय अभिनेत्री थीं और उन्होंने तमिलतेलुगूकन्नड़ फिल्मों के साथ-साथ एक हिंदी और एक अंग्रेजी फिल्म में भी काम किया है।


सन 1989 में तमिल नाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता बनने वाली वे प्रथम महिला थीं। वर्तमान समय में तमिलनाडु की मौजूदा राजनीती में जयललिता का ठोस नियंत्रण है। सन 1991 में वे पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। सन 2011 में जनता ने तीसरी बार जयललिता को तमिलनाडु का मुख्यमंत्री चुना। उन्होंने राज्य में कई कल्याणकारी परियोजनाए शुरू की। अपने शुरूआती कार्यकाल में जयललिता ने जल संग्रहण परियोजना और औद्योगिक क्षेत्र के विकास की योजनाओं जैसे विकास के कार्य किए।


राज्यपाल जी का जयललिता जी के बारे में वो संस्मरण :-

राज्यपाल भीष्म नारायण सिंह अपनी यादो के झरोखों में झांकते हुए बताते हैं, "जयललिताजी जब शपथ लेने के बाद मुझसे मिलने आईं तो मुझे पता चल चुका था कि वो गाजर का हलवा पसंद करती हैं. इसलिए मैंने उनके लिए गाजर का हलवा बनवाया. मैंने उनसे कहा कि आपका दृष्टिकोण राष्ट्रीय है,इसलिए मैं उम्मीद करता हूँ कि आप कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर वही लाइन लेंगीं और एलटीटीई जैसे पृथकतावादी संगठनों को अपनी जड़ें जमाने का मौका नहीं मिलेगा."

"मेरे प्रति उनके मन में इतना सम्मान था कि वो हर हफ़्ते कोशिश करती थीं कि आकर राज्यपाल को ब्रीफ़ करें. भारत के किसी राज्य में एसपी से लेकर मुख्य सचिव की ट्रांसफ़र की फ़ाइल कभी भी राज्यपाल को नहीं भेजी जाती हैंलेकिन जब तक मैं वहाँ का राज्यपाल रहाट्रांसफ़र और पोस्टिंग की फ़ाइल हमेशा मेरे पास आती थी."




जयललिता अब तक चार बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. अपने मज़बूत प्रशासन के लिए जहाँ उन्हें अक्सर वाहवाही मिली हैवहीं उन पर व्यक्ति पूजा और भृष्टाचार के आरोप भी लगे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार एम आर नारायणस्वामी कहते हैं, "काफ़ी अद्भुत करियर रहा है इनका. ध्यान देने वाली बात ये है कि ये ब्राह्मण जाति से आती हैं और इनका जन्म कर्नाटक में हुआ है. उन्होंने जिस तरह से एआईडीएमके पार्टी पर अपना नियंत्रण जमायाउसे एक बहुत बड़ी उपलब्धि माना जाएगा."
"चाहे हम उन्हें पसंद करें या नापसंद करें. इनके प्रशासन में बहुत कमियाँ रही हैंलेकिन बहुत उपलब्धियाँ भी रही हैंजिस तरह उन्होंने सुनामी के दौरान प्रशासन चलायालोग उसे आज भी याद करते हैं. ये अलग बात है कि जब पिछले साल चेन्नई में बाढ़ आई थी तो उनका प्रशासन फ़ेल हो गया था."


वो चीर हरण,, जयललिता का जिसके बाद उन्होंने प्रतिज्ञा ली 

विधानसभा अध्यक्ष ने सदन को स्थगित कर दिया. जैसे ही जयललिता सदन से निकलने के लिए तैयार हुईंडीएमके के  एक सदस्य ने उन्हें रोकने की कोशिश की. उसने उनकी साड़ी इस तरह से खींची कि उनका पल्लू गिर गया. जयललिता भी ज़मीन पर गिर गईं.

एआईडीएमके के एक ताकतवर सदस्य ने डीएमके सदस्य की कलाई पर जोर से वार कर जयललिता को उनके चंगुल से छुड़वाया. अपमानित जयललिता ने पांचाली की तरह प्रतिज्ञा ली की कि वे उस सदन में तभी कदम रखेंगी जब वो महिलाओं के लिए सुरक्षित हो जाएगा. दूसरे शब्दों में वे अपने आप से कह रही थीं कि वे अब तमिलनाडु विधानसभा में मुख्यमंत्री के तौर पर ही वापस आएंगी.

संदर्भ: जयललिता की जीवनी 'अम्मा जर्नी फ़्राम मूवी स्टार टु पॉलिटिकल क्वीन'


वो अपमान जब स्व.एमजी आर की शव यात्रा के दौरान हुआ

उस दिन जयललिता की आँखों से एक आँसू नहीं निकला. वो दो दिनों तक एमजीआर के पार्थिव शरीर के सिरहाने खड़ी रहीं...13 घंटे पहले दिन और 8 घंटे दूसरे दिन. एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन की कुछ महिला समर्थकों ने उनके पैरों को अपनी चप्पलों से कुचलने की कोशिश की........

"कुछ ने उनकी त्वचा में नाख़ून गड़ा कर उन्हें चिकोटी काटने की कोशिश की ताकि वो वहाँ से चली जांए. लेकिन जयललिता सारा अपमान सहते हुए वहाँ से टस से मस नहीं हुईं. जब एमजीआर के पार्थिव शरीर को अंतिम यात्रा के लिए गन कैरेज पर ले जाया गया तो जयललिता भी उसके पीछे पीछे दौड़ीं. उस पर खड़े एक सैनिक ने अपने हाथों का सहारा देकर उन्हें ऊपर आने में भी मदद की."

"तभी अचानक जानकी के भतीजे दीपन ने उन पर हमला किया और उन्हें गन कैरेज से नीचे गिरा दिया. जयललिता ने तय किया कि वो एमजीआर की शव यात्रा में आगे नहीं भाग लेंगीं. वो अपनी कंटेसा कार में बैठीं और अपने घर वापस आ गईं."

मुख्य कार्य जिसने  जयललिता को एक अलग जगह तमिलनाडू  की जनता के बीच दिला दी ।

वो अपने मंत्रियों से मिलना भी पसंद नहीं करती हैं. लोगों में मुफ़्त चीज़े बांटने की नीति ने भी उन्हें बहुत लोकप्रिय बनाया... मुफ़्त ग्राइंडरमुफ़्त मिक्सीबीस किलो चावल देने पर अर्थशास्त्रियों ने बहुत नाक भौं सिकोड़ीलेकिन इसने महिलाओं के जीवनस्तर को उठा दिया... और लोगों के