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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

जन लोकपाल विधेयक पर `किसी भी हद' तक जाऊंगाः केजरीवाल

जन लोकपाल विधेयक पर `किसी भी हद' तक जाऊंगाः केजरीवाल
प्रकाशित: 09 फरवरी 2014
 
  


नई दिल्ली, (भाषा)। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार निरोधी जन लोकपाल विधेयक को पारित कराने के लिए किसी भी हद तक जाने की आज चेतावनी दी। भाजपा के अलावा कांग्रेस भी इस विधेयक का विरोध कर रही है, जिसका समर्थन उनकी सरकार के बने रहने के लिए जरूरी है।
प्रेस ट्रस्ट के मुख्यालय में एजेंसी के संपादकों के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, भ्रष्टाचार बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और मैं किसी भी हद तक जाउढंगा।यह पूछे जाने पर क्या वह इस्तीफा भी दे सकते हैं, आम आदमी पार्टी के नेता ने इसकी पुष्टि में प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार महत्ती मुद्दा है जिसपर वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह ःइस्तीफाः आपकी व्याख्या है।यह कहते हुए कि कांग्रेस और भाजपा विधेयक को कभी पारित नहीं होने देंगे, उन्होंने कहा, चूंकि उनकी सरकार ने राष्ट्रमंडल खेल परियोजनाओं में कथित भ्रष्टाचार की जांच कराने का निर्णय किया है, कांग्रेस ने अपनी आवाज और तीखी कर दी है। उन्होंने कहा कि पिछले सात साल से दिल्ली नगर निगम की सत्ता पर काबिज भाजपा पर भी इस बारे में आरोप हैं।
 दिल्ली कैबिनेट ने पिछले हफ्ते चर्चित जन लोकपाल विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है, जिसके दायरे में मुख्यमंत्री से लेकर समूह डी के कर्मचारियों सहित सभी लोकसेवक आते हैं। प्रस्तावित विधेयक में भ्रष्टाचार का दोषी पाए जाने वालों के लिए अधिकतम आजीवन कारावास के दंड तक का प्रावधान है।
आम आदमी पार्टी ने भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए जन लोकपाल विधेयक लाने का विधानसभा चुनाव से पहले जनता से वायदा किया था।
45 वर्षीय मुख्यमंत्री ने कहा, वे ःकांग्रेसः जानते हैं कि अगर कड़ा लोकपाल आ गया तो इन लोगों को परेशानी होगी। सात साल से भाजपा दिल्ली नगर निगम पर काबिज है और उन्हें भी परेशानी हो सकती है। अगर विधेयक पारित हो जाता है तो राष्ट्रमंडल खेलों से संबंधित सारे मामले लोकपाल के पास जाएंगे।
उन्होंने कहा, हमने गृह मंत्रालय को लिखा है कि वह ः2002 केः आदेश को वापस ले जो दिल्ली सरकार को निर्देशित करता है कि विधानसभा में किसी विधेयक को पारित कराने से पहले मंत्रालय की मंजूरी ली जाए। उन्हेंने कहा कि उनकी सरकार ऐसे असंवैधानकि नियमों को स्वीकार नहीं कर सकती है।
 केजरीवाल ने कहा, वह सिर्फ एक आदेश था , जो संविधान के एकदम खिलाफ था। गृह मंत्रालय का आदेश दिल्ली विधानसभा के कानून बनाने की शक्तियों को भला कैसे कमतर कर सकता है। यह बहुत बहुत गंभीर मसला है। मैंने संविधान की शपथ ली है, गृह मंत्रालय के आदेश की नहीं, मैं संविधान का पालन करूंगा।
 उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री बनने के बाद जब मैंने आदेश देखा, मैं पूरी तरह हतप्रभ रह गया। वह ऐसा कैसे कर सकते हैं। तब मैंने अपने अधिकारियों से कहा कि मुझे इतिहास दिखाएं। मेरे पास 13 विधेयकों की सूची है जिनमें उन्होंने कोई मंजूरी नहीं ली है।
 उन्होंने कहा, विधेयक छह सात साल तक गृह मंत्रालय के पास पड़े रहते हैं। अगर ऐसा होगा तो विधानसभा कानून कैसे बनाएगी। शीला दीक्षित केन्द की मंजूरी लिए बिना ही कानून बनाया करती थीं।
 केजरीवाल ने कल उप राज्यपाल नजीब जंग से कहा था कि वह कांग्रेस और गृह मंत्रालय के हितों का संरक्षण न करें, जो उनकी सरकार के जन लोकपाल विधेयक को बाधित करना चाहते हैं।
 उन्हेंने कहा, हमने गृह मंत्री को लिखा है कि वह ः2002 केः आदेश को वापस ले, जो दिल्ली सरकार को विधानसभा में किसी विधेयक को मंजूरी देने से पहले मंत्रालय की मंजूरी लेने का निर्देश देता है।
 गृह मंत्रालय के आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए केजरीवाल ने कहा कि सरकार मंजूरी के लिए विधेयक गृह मंत्रालय के पास नहीं भेजेगी।
 केजरीवाल के अनुसार, संविधान कहता है कि दिल्ली सरकार के पास तीन विषयों को छोड़कर कानून बनाने की शक्ति है। वह ऐसा कोई कानून नहीं बना सकते जो किसी केन्द्राrय कानून के खिलाफ हो। अगर वह ऐसा करते हैं और अगर राष्ट्रपति कानून को मंजूरी दिए जाने के बाद उसपर अपनी सहमति दे देते हैं तो वह भी किया जा सकता है।
 उन्होंने कहा, इसका मतलब है कि हमें विधेयक को पेश करने से पहले मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। यह शक्ति संविधान ने दिल्ली को दी है। संविधान सर्वोपरि है। एक विधानसभा की कानून बनाने की शक्तियां संविधान द्वारा परिभाषित होनी चाहिएं, किसी और के द्वारा नहीं।
 राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सरकार अधिनियम के प्रावधानों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें उल्लेख किया गया है कि अगर एक कानून है जो धन विधेयक है अथवा जो किसी केन्द्राrय कानून के विरूद्ध है तो उसे पेश करने से पहले उपराज्यपाल की सहमति लेनी होगी।
 केजरीवाल ने कहा, लेकिन कानून की धारा 26 कहती है कि अगर सहमति पहले नहीं ली जाएगी तो वह बाद में ली जा सकती है। उसमें भी कोई समस्या नहीं है। लेकिन, गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया है, जो कहता है, अगर दिल्ली सरकार कोई कानून लाती है, तो उसे केन्द्र सरकार की मंजूरी लेनी होगी।
 केन्द्र की मंजूरी के बिना विधेयक मंजूर करने के दिल्ली सरकार के प्रस्ताव की संवैधानिकता पर जंग ने सालिसिटर जनरल की राय मांगी थी। इसके जवाब में उन्होंने बताया कि मंजूरी के बिना विधेयक पारित कराना गैर कानूनी होगा।
 

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